

ये सोचने का भी शिलशिला भी बढा गजब का है मैंने जब अपने दोस्त का सोचने पर पोस्ट पढ़ा तो मई भी सोच में पढ़ गया की क्या सोचा है और जो वो सोचा है वो बढ़िया सोचा है ऐसी सोच आखिर वो लाता कहा से है और इसी चक्कर में मई जो सोच था वो भी भूल गया की अखीर मैं सोचा क्या था और फीर लगा की अगर मैं यू ही सोचने लगा तो फीर पढ़ने वाले भी क्या सोचेगे,और इशी सोचने की चक्कर में हमारी जिंदगी निकल जाती है ,वैसे प्यार के मामले में भी अक्सर लोग सोचते हुए पाए जाते है ..कुछ लोग तो प्यार करने के बाद सोचते है पर कुछ ऐसे भी विद्वान है जो सदी के बाद सोचना सुरु करते है ,की पहले ही सोच लेना था ,ऐसे ही सोचने वाले विद्वान हस्ती हमारे प्रधानमंत्री जी भी है जो सायद अब ये सोच रहे है की रामदेव बाबा को इतना सोचे न्होते तो ये सोचने वाला वातावारद ही न होता और न लोग ऐसा सोचते की प्रधानमंत्री जी ने ऐसा क्यों सोचा ,वैसे अबिषेक बच्चन तो अभी ये सोच भी नै पाए है की मैंने ऐश को क्यों सोचा और उधर अमिताभ जी नाना बने का सोच बैठे है ,वैसे सोचने का सिलसिला तो हर वक्त चलते ही रहता है पर हमें धयान देना चाहिए की सही सोच क्या है जैसा की न्यूटन जी ने सोचा था हर सोच की एक सही दिशा होनी चाहिए तो मैं आपको और अधिक नै सोच्वना चाहता क्योकि आप पहले ही काफी सोच चुके है तो उमीद है की एक नए सोच की सुरवात होगी ......
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