शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

माँ का दर्द

स्कूल के बच्चो को दोपहर का भोजन परोसा जा रहा था की अचानक सिलेंडर फटने से कई बच्चे आग की लपेटो से झुलस गये ‌, ७ को शहर के अस्पताल में दाखिला करवाया गया ,कई दिनों के पर्यसो के बावजूद २ बच्चे नहीं बचाए जा सके , उन्ही में एक राम सींग की लड़की थी ,खबरे सुनते ही पहले से गमगीन रोशनी ने छाती पीट ली , पुरे घर में मातम च गया , नीलेश २-४ दीन उदास रहकर अपने काम में जुट गया , सब कुछ पहले सा ,दीन खेतों में लगा रहता ,शाम होते ही बोतले खुल जाती ,लेकीन रोशनी थी की उसकी आखे न सूखती , आखीर माँ थी ‌‌‌ इस हादसे में हताहत हुए बच्चो के परिवार वालो को सरकार ने मुआवजा भी दीया ,चुनाव सीर पर थे , इसलीए एक सप्ताह के भीतर ही राम सींग  को एक लाख का चेक सरकारी अधिकारी दी गये , चेक मीलने से रोशनी तत्ष्ट थी , लेकिन राम सींग की खुसी छुपाये नहीं छप रही थी ,शाम को उसके साथ उसके कई हमजोली भी आ जुटे ,रोशनी को बहुत बुरा लग रहा था ,रसोई में बैठी कुढ़ रही थी . इतने में ठहाके भी लगने लगे , उसका कलेजा अंदर चीर गया .जा कर फुट पड़ी .."कुछ तो शर्म करो ,अभी तक छोरी का दसवा भी नाही हुआ है ". राम सींग को अब तक चढ चुकी थी , बोला ---"अरे बावली ,क्यों परेसान लागे है ,बात गम की नै खुसी की है - गर वो बच जाती तो कई लाख देने पडते , मर गई उल्टा एक लाख देकर गई ".

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