शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

शरमा जी

शाम का वक्त था मैंने स्टेेसन में लगे घडी की तरफ नज़रे घुमाते हुए अपने कदम तेज कर दीये घडी में करीब ४.२५  हो रहे थे ‌ बस लोकल अब छुटने ही वाली थी ,मैं भी लगभग पहुच ही गया था ,हर रोज की तरह आज भी भीड़ बहुत थी,इससे पहले की मै और आगे जा पाता की ट्रेन हार्न देते हुए आगे बढ़ने लगी ‌ मैं जैसे तैसे पहले नंबर की बोगी में चढ गया ‌कुछ देर तक भीड़ में फसे रहने के बाद मुझे एक धक्कामुक्की रहीत कोना मील गया , अब बारी थी कुछ टाइम पास की सो मैंने अपनी नज़रों से आस पास का जायजा लेना सुर कीया तभी मुझे एक दोस्त दीखायी दीया ,वैसे तो वो उम्र में बढे है पर रोज मुलाकात होती तो अच्छे दोस्त बन गए है ‌ मैंने उनको आवाज लगाई संकल्प सर .....संकल्प सर काफी माथापच्ची के बाद उनको मै दीखायी दीया ‌ वो खुशी खुशी भीढ़ को तीर की तरह चीरते हुए मुझ तक पहुच गए , वाह बेटा बढ़ीया जगह में खड़े हो मै एक अच्छे दोस्त की तरह मुस्कान बीखेरते हुए कहा सर आप जैसे दोस्त  सब  उन्ही की दुआवो का असर है ‌ मेरा मन्ना है की एक मुस्कान आदमी के सारे टेंसन को खतम ना सही कम तो कर ही देता है और हम अपने बातों में मसगुल हो गए ‌ थोड़ी देर में भीढ़ कम हुई और हम दोनों ने रहत की सास लेते हुए एक पंखे के नीचे खड़े हो गये , तबी अचानक मेरी नज़र एक अंकल पर पड़ी जो दो कन्याओ के बीच बैठे हुए थे मेरे ख्याल से उसे बैठना कम पकाना कहे तो ठीक रहेगा ,उनको देख के मुझे फेवीकोल का एडवाटाइस याद आने लगा ‌ तबी सर ने कहा कहा खो गये ,....मै थोडा हडबडाया ......और कहा ...उन अंकल को देख रहे हो उनका मै कुछ कहता की वो बोल पड़े जो लड़की से चिपके पड़े है .....अरे हा आगे सुनो ...उनको सब शरमा जी कहते है,वो भी ट्रेन में जाते तो पहचान हो गयी है ,वैसे तो वो पुलीस के कराइम ब्रांच में है पर सबको इतना हँसाते थे और बहुत बड़ी बड़ी  फिलासफी देते थे ‌ और आज खुद वो बोल पड़े अबे बेटी होगी उम्र देख कीतना फर्क है ‌ हम दोनों ने अपनी बात की पुस्टी के लीये पास जाकर उनकी बाते सुनने की योजना बनायीं , वैसे भी ट्रेन में मजेदार कुछ था नहीं सो हम थोडा आगे गये और खड़े हो के बाते सुनने की कोसीस करने लगे  ,अजीब भी लग रहा था वो पुलीस में है करके तभी सर बोले अबे ट्रेन उसके बाप की थोड़े है चल और वो मेरे को धक्का देने लगे जैसे कोई माल गाढ़ी में जबरन माल ठुस रहा हो ‌ अब हम उनके ठीक आगे की सीट पर टीक कर खड़े हो गये ,वो लड़की और शरमा जी अब भी एक दूसरे का हाथ पकडे बैठे थे ‌ मेरा संकोच अब समाप्त हो चूका था और मै सर से कुछ बोलता की मैंने देखा की शर्मा जी के गालो को लड़की ने छुते हुए कहा जानू कल आते वक्त अलुगुंडा खायेगे अभी तो स्टेसन पापा लेने आ रहे है और तुम छुटटी कब लोगे बताना ‌ हम दोनों हैरानीभरे नजरो से एक दूसरे को देखने लगे ,....इसके पहले की हम और कुछ सोचते ट्रेन स्टेसन पहुँच गयी ,लड़की उठी और इठलाते हुए जाने लगी अगला स्टेसन हमारा था , और शर्मा जी का भी ‌ वो उठे और नीद से जागे आदमी की तरह बोले अरे कहा बेटा दीखते नहीं आजकल ,अब तो उनको अंकल भी कहने का मन नहीं कर रहा लगा जैसे उसको कह दू लड़की से नज़र हटे तब ना देखोगे ,पर मैंने शायद ऐसी कोई पाठ नै सीखी की अपनों से बढ़ो से बहस करो मैंने सिर्फ एक मुस्कान बीखेरी तब तक हमरी गाड़ी  प्लेटफार्म पर पहुच चुकी थी और हम बीना देर कीये उतर गये‌ ‌‌.
  

5 टिप्‍पणियां:

Umra Quaidi ने कहा…

क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना|

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर.
दशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ...

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें

Unknown ने कहा…

sunder prayas